नमस्कार दोस्तों, इस पोस्ट में हम चंद्रशेखर आजाद पर निबंध यानी chandrashekhar azad in hindi essay में चर्चा करने जा रहे हैं। हम चंद्रशेखर आजाद पर निबंध को १००, २०० और ३०० शब्दों में सीखेंगे।
तो चलो शुरू करते है, chandra shekhar azad essay in hindi
चंद्रशेखर आजाद पर निबंध | chandrashekhar azad in hindi essay in 100,200 and 300 words
100 शब्दों में चंद्रशेखर आजाद पर निबंध | essay on chandrashekhar azad in hindi in 100 words
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा उनके पैतृक गांव में हुई। उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा संस्कृत स्कूल, वाराणसी में पूरी की।उनकी बचपन से ही जणसेवा में रुचि थी। उन्होंने पंद्रह साल की छोटी उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। तभी से वो देशभक्ति, प्रखर देशभक्ति और निडर स्वभाव के रूप में जाने, जानने लगे।
उन्हें अपनी मातृभूमि के प्रती बहुत सम्मान था। उनका मानना था कि गैंडे की खाल वाली ब्रिटिश सरकार आपको तब तक आजादी नहीं देगी जब तक कि सशस्त्र विद्रोह न हो। भगत सिंह उन्हें अपना गुरु मानते थे।
बाद में उन्होंने अंग्रेजों के खजाने को लूटने के लिए, शस्त्र कारखाने स्थापित किए और युवाओं को हथियार चलाने का प्रशिक्षण देना शुरू किया। ब्रिटिश सरकार उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन उनके हाथ में कुछ नहीं आया। अंत तक वे अंग्रेज सरकार को शरण नहीं गये। आंग्रेजोने उन्हे पकड़ने के लिए 10,000 रुपये के इनाम की भी घोषणा की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
200 शब्दों में चंद्रशेखर आजाद पर निबंध | essay on chandrashekhar azad in hindi in 200 words
चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों में से एक थे। उनका पूरा नाम चंद्रशेखर सीताराम तिवारी है। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को अलीराजपुर जिले के भावरा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जागरानी देवी था। उनकी प्राथमिक शिक्षा भावरा गांव में हुई। लेकिन फिर दिसंबर 1921 में, महात्मा गांधी ने वाराणसी के एक संस्कृत स्कूल में असहयोग आंदोलन शुरू किया। चंद्रशेखर आजाद, जो केवल पंद्रह वर्ष के थे, उन्होंने उस आंदोलन में भाग लिया।
उस समय उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया था। जब उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पूछताछ के लिए लाया गया, तो मजिस्ट्रेट ने नेताओं से सवाल किया, जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि उनका नाम चंद्रशेखर था, उनके पिता का नाम स्वातंत्र्य था और उनका अंतिम नाम आजाद था। लोगों ने उन्हें खूब पसंद किया और तभी से उनका नाम चंद्रशेखर आजाद के नाम से जाना जाने लगा। फिर उन्होंने सशस्त्र क्रांति का मार्ग खोजा। उसने शपथ ली कि वह पुलिस को नहीं मिलेगा और वह हमेशा मुक्त रहेंगे। उन्होंने डकैती इसलिए की क्योंकि वे क्रांति के लिए पैसा चाहते थे।
उन्होंने देश के लिए लूट को अंजाम दिया। उन्हीं में से एक था काकोरी कांड. चंद्रशेखर आजाद जैसे 10 क्रांतिकारियों के साथ मिलकर रेलवे का खजाना लूटने की योजना थी. इसमें रामप्रसाद मुरारीलाल, बनवारीलाल, मुकुंदलाल जैसे कई क्रांतिकारियों ने भाग लिया। 9 अगस्त को लखनऊ से चल रही ट्रेन से सरकारी खजाना लूट लिया गया था. राम प्रसाद बिस्मिल की मृत्यु के बाद, चंद्रशेखर आज़ाद ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के नाम से हिंदुस्तान एसोसिएशन का पुनर्गठन किया, जिसे भगत सिंह का गुरु माना जाता है।
27 फरवरी 1931 को, जब राजगुरु इलाहाबाद की जेल में थे, तब वे आर्थिक मदद के लिए अपनी माँ से मिलने गए। तभी अज्ञात मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने जमीन की घेराबंदी कर दी, चंद्रशेखर आजाद और पुलिस मे गोलियां चली, बंदूक की गोली खत्म होते ही, आखिरी गोली से खुद को मार डाला। भारत की आजादी के बाद, इस मैदान का नाम बदलकर चंद्रशेखर आजाद मैदान कर दिया गया।
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300 शब्दों में चंद्रशेखर आजाद पर निबंध | chandrashekhar azad in hindi essay in 300 words
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को भावरा अलीराजपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था। इनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जागरानी देवी था। उनके पूर्वज उत्तर प्रदेश में बस गए लेकिन उनके पिता मध्य प्रदेश में। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा भावरा गांव में पूरी की और बाद में आगे की शिक्षा के लिए अपनी मां की इच्छा के अनुसार संस्कृत सीखने के लिए वाराणसी चले गए। 1921 में, वह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। उस वक्त वह 15 साल का था। उस वक्त पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था।

वहां उन्होंने अपना अंतिम नाम आजाद दर्ज कराया, वही नाम उन्होंने अपने जीवन में इस्तेमाल किया। उस समय उन्हें 15 कोड़ों की सजा सुनाई गई थी।वह हर चाबुक के लिए वंदे मातरम की घोषणा कर रहे थे। वे मार से जरा भी डगमगाए नहीं। उन्होंने बड़ी बहादुरी से आंग्रेजोका सामना किया। उसका निशाणा सटीक था और वह कभी नहीं चूकता। उन्होंने बचपन से ही इसका अभ्यास किया था। उनकी संस्था चंद्रशेखर आजाद के नाम से जानी गई। वह कांग्रेस की सोच में ज्यादा नहीं टिक पाये। उन्होंने अपने स्वयं के स्वतंत्र जय भारत आजाद संगठन की स्थापना की।
उनके संगठन से कई युवा जुड़े। उनमें से भगत सिंह राजगुरु सुखदेव थे।चंद्रशेखर आजाद ने 1928 में लाहौर में एक अंग्रेज अधिकारी सौंडर्स की हत्या करके लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लिया था। उनके संगठन ने बाद में सरकारी खजाने को लूट लिया और संगठन के लिए धन की व्यवस्था करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि जो भारतीयों का है वह देश को स्वतंत्र बनाने में काम आना चाहिए। उन्होंने काकोरी कांड में सक्रिय भाग लिया और ब्रिटिश सरकार को खूब परेशान किया। और वे कभी आंग्रेज सरकार के कारवाई मे उनके हाथ नहीं लगे।
जब वे इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव सिंह के साथ देश के भविष्य के बारे में चर्चा कर रहे थे, तब पुलीस ने उन्हे घेर लिया उन पर अचानक हमला किया गया, उन्होंने पुलिस पर गोली चला दी और सुखदेव को भागने में मदद की। लेकिन वह लगातार बीस मिनट तक पुलिस के सामने फंसे रहे और किसी भी पुलिस अधिकारी की उनके पास जाने की हिम्मत नहीं हुई।
उन्होंने आखिरी गोली खुद को मार कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली, लेकिन वह इन अत्याचारियों के हाथ नहीं लगे। उन्होंने साबित कर दिया कि मैं आजाद हूं और आजाद रहूंगा। 27 फरवरी, 1931 को उन्होंने अपनी जमीन के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
निष्कर्ष
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